पाठशाला संचालन में आने वाली समस्या का समाधान - परम पुज्य मुनि निर्वेंग सागर जी महाराज जी के द्वारा

प्र. कुछ बच्चे मात्र रविवार को पूजन में आते हैं क्या करें?

उत्तर :

कभी-कभी पूजन में क्लास में ज्यादा बच्चे नाश्ते के समय इकठ्ठा हो जाते हैं तब ऐसा ना कहें कि बच्चे नाश्ते के लोभ से आते हैं,यह एक स्वाभाविक लीला है बच्चों की ,घर में सब कुछ होने के बाद भी सामूहिक बच्चों के बीच में बैठकर खाना आदि उन्हें ज्यादा अच्छा लगता है*।_
_*किसी के मुख से ऐसा सुनकर कि बच्चे नास्ते के लोभ से आते है कुछ बच्चे पूजन में ही आना छोङ देते हैं अथवा नाश्ता करने नही जाते इसलिए इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए और नाश्ते में कम से कम दो आइटम एक नमकीन एक मीठा अथवा दुध -फल आदि भी होने चाहिए ।

प्र. पाठशाला के बोर्ड पर क्या-क्या लिखना चाहिए?

उत्तर :

परीक्षा में प्रथमादि स्थान प्राप्त विद्यार्थी ,प्रतियोगिताओं में उत्तीर्ण बच्चे ,पूजन में बने प्रमुख बालपात्र ,जन्म दिवस वाले बच्चे,रविवारीय नाश्ता देने वाले श्रावक परिवार ,पाठशाला में बच्चों की कुल संख्या ,पढाया जाने वाला विषय आज का नियम ,कोई एक नीति -शिक्षा प्रद वाक्य ,सूक्तियॉ ,आज का पर्व मुक्तक ,शिष्टाचार की बातें इत्यादि कुछ न कुछ प्रतिदिन पाठशाला के सूचना -पटल पर लिखना ही चाहिए ।अपने बच्चों का नाम ब्लेक बोर्ड पर लिखा देख माता -पिता ,बच्चे गौरवान्वित होते हैं। और इससे अन्य बच्चों को पाठशाला आने की प्रेरणा मिलती हैं*।

प्र. मोबाइल क्यों नहीं रखना चाहिए एवं इंटरनेट क्यों नहीं चलाना चाहिए??

उत्तर :

मोबाइल एवं इंटरनेट बुरा नहीं है, किंतु उसके उपयोग करने का तरीका एवं उद्देश्य सही होना चाहिए आवश्यकता पड़ने पर ज्ञान के विकास के लिए एवं संपर्क बनाने के लिए सीमा के भीतर लिमिट में रहकर उपयोग करना उतना बुरा नहीं है, जितना कि व्यर्थ में बातें करना, चैटिंग करना, अश्लील चित्र एवं फिल्म देखना एवं अपना समय व्यर्थ करना। मोबाइल आदि उपकरण है मात्र मन बहलाने का खिलौना नहीं। विद्यार्थी जीवन में इन का प्रयोग हमारे जीवन की दिशा को बदल सकता है एवं कैरियर को नष्ट कर सकता है। अतः मोबाइल आदि का प्रयोग कम-से-कम करना ठीक है। मम्मी पापा आदि के मोबाइल से काम चल सके तो नया मोबाइल नहीं खरीदना चाहिए। मोबाइल और इंटरनेट हमारे मन को चंचल बनाने का बड़ा साधन है।

प्र. पुरस्कार सामग्री कैसी बॉटना चाहिए?

उत्तर :

_बच्चों को पुरस्कार स्वरुप दी जाने वाली वस्तु सुंदर आकर्षक ,अच्छे मूल्य वाली ,उनके उपयोग में आने वाली ,जो अन्य किसी के पास में न हो ऐसी होनी चाहिए।घटिया क्वालिटी की सस्ती ,अनुपयोगी ,व्यर्थ रखी कॉपी ,पुस्तकें ,पेन ,पेंसिल,प्लेट,गिलास,घङी आदि मामग्री कभी भी बच्चौं को नही देना चाहिए। क’ई बार ये देखा गया है कि एडवटाईज की डायरी ,हल्के क्वालिटी के पेन , पुरानी पुस्तकें आदि आदि अच्छी तरह से पैक करके श्रावक दे देते हैं व्यवस्थापकों को ऐसी पैक वस्तु स्वीकार नहीं करनी चाहिए और ना ही बच्चों को देनी चाहिए यह उनकी  भावनाओं के साथ खिलवाङ है ऐसा समझना चाहिए_ ।
_अत:पुरस्कार सामग्री भले कम हो ,छोटी हो किन्तु अच्छी क्वालिटी की हो ,भले वस्तु कम टिकाऊ हो किन्तु आकर्षक एवं उपयोगी होना चाहिए_ । _प्राय:सुन्दर वस्तुओं की ओर बच्चों का आकर्षण होता है इस बात का ध्यान रखना चाहिए_
जैसे -टेडी वियर ,गाने वाली डॉल,क्रिकेट के बैट प्यानो(वाद्ययंत्र:-) कैरम बोर्ड,फैन्सी बैग ,डिक्शनरी ,डायरी इत्यादि तथा कुछ सामान्य पुरस्कार जैसे टिफिन बाक्स ,वॉटर बैग ,खिलौने वाला मोबाइल ,टेनिस गेंद बल्ला ,रबर बेन्ड ,हाथ के कडे ,कूदने की रस्सी ,गुल्लक ,द्रव्य रखने ।की सुन्दर डिब्बयॉ ,बेडमिंटन ,हाथ घङी बजाने का बाजा ,फुटबाल इत्यादि अनेक प्रकार के खेलकूद की सामग्री ।पहले से ही खरीद कर उन्हे कॉच के दरवाजे वाली अलमारियों में व्यवस्थित रखे एवं समय-समय पर वितरित कर|

प्र. पुरस्कार कब बाटना (वितरित:-)करना चाहिए?

उत्तर :

कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद उसी दिन तत्काल अथवा सात दिन के पहले ही पुरस्कार वितरित करना चाहिए ,क्योंकि विशेष अवसर का इंतजार करते हुए ४-६ माह बीत जाने पर दिये गए पुरस्कार का कोई विशेष महत्त्व नहीं रह जाता है और बच्चों को भी तत्काल मिलने वाले पुरस्कार का जो आन्नद होता है वह बाद में नही आता* ।

प्र. जिंदगी में कभी गुरु या माता पिता में से किसी एक को चुनना पड़े तो किसे चुनना चाहिए?

उत्तर :

हमारे जीवन में माता-पिता का बहुत उपकार है। अतः व्यवहारिक दृष्टि से माता पिता का हमेशा सम्मान होना चाहिए उनकी बातों को स्वीकार करना चाहिए यदि आप मोक्ष मार्गी बनना चाहते हैं तब माता पिता अपने मोह के कारण आपको घर छोड़ने नहीं देते हैं, अथवा साधु संगति धार्मिक क्रियाओं से रोकते हैं। ऐसे समय में आत्म कल्याण का उद्देश होने पर गुरु को चुनना श्रेष्ठ है। कई बार माता पिता भी बच्चों को धर्म मार्ग में लगाना चाहते हैं,किंतु उन्हें डर लगता है कि यदि बच्चा अच्छी तरीके से मोक्ष मार्ग पर नहीं चल पाया तो हमारी एवं परिवार की बदनामी होगी। इसलिए भी वे मना करते हैं। ऐसे समय में माता पिता को विश्वास दिलाते हुए धर्म मार्ग में आगे बढ़ना चाहिए।

प्र. पाठशाला में कार्यालय का क्या महत्व है?

उत्तर :

कार्यालय एक अतिमहत्तवपूर्ण वह स्थान है जहाँ पर व्यवस्थापक एवं शिक्षक एक साथ बैठकर पाठशाला के सुव्यवस्थित संचालन एवं निजी योजना को मूर्तरूप देते हैं । कोई भी स्कूल हो अथवा संस्था हो उसका एक कार्यालय अवश्य होता है। हमारी पाठशाला भी एक छोटा -सा किन्तु महत्त्वपूर्ण विद्यालय ,गुरू कुल ही है । ऐसा सोच – *विचारधारा बनाते* *हुए पाठशाला का एक स्वतन्त्र कार्यालय निर्माण करना चाहिए* ।
*मंदिर अथवा धर्म शालाऔ में से* *एक ऐसा कमरा जिसे अन्य कार्यो में उपयोग न किया जावे ,सबको* *स्पष्ट दिखने वाला हो कार्यालय बनाने के लिए उपयोग करना चाहिए मंदिर समाज के ट्रस्टियों को इसके लिए सहज अपनी स्वीकृति प्रदान करनी चाहिए।

प्र.पाठशाला कमेटी एवं समाज का शिक्षकों के प्रति क्या कर्तव्य है?

उत्तर :

*जहॉ पहले से पाठशाला कमेटी ,संचालन समिति बनी हो उन्हें पाठशाला शिक्षकों के हाथ में पाठशाला में पुरस्कार आदि कार्यों में व्यय करने हेतु कम से कम १०००रु  प्रति माह अथवा बच्चों की संख्या नुसार ३०००,४०००रुपये प्रति माह देना चाहिए ।जिसको शिक्षक स्वतंत्र रुप से पाठशाला बच्चों के लिए उपयोग कर सकें तथा दो-तीन माह में कार्यालय में आकर व्यवथापक आय-व्यय का लेखा जोखा देख लें*
*विश्वास और प्रेम के साथ उनके ऊपर पाठशाला की व्यवस्था सौंपे ,अपने दुकान की चाबी जब आप अपने बच्चों कों सौंप सकते हैं तो योग्य शिक्षिका ,शिक्षकों को व्यवस्था क्यों नहीं थोङी बहुत कम ज्यादा व्यवस्था होने पर अपने ही बच्चे है ऐसा मानकर एडजेस्ट करें|

प्र.पाठशाला संचालन हेतु कमेटी बनाना आवश्यक है क्या?

उत्तर :

जहाँ पर सामाजिक कमेटी के अलावा कोई पृथक् से पाठशाला समिति  नहीं है वहाँ पर नवीन कमेटी बनाने की आवश्यकता नही है मूल कमेटी के अन्तर्गत ही एक पाठशाला उपसमिति बना सकते हैं ।जिसकी रुपरेखा इस प्रकार हो सकती है*_
(१)संचालन समिति
(२)संरक्षक समिति
(३)शिक्षक समिति

प्र.महाराज श्री आप कहते हैं कि जानवरों से प्राप्त वस्तुओं का प्रयोग नहीं करना चाहिए फिर भी आप के पास मयूर पंख की पिच्छी है वह क्यों?

उत्तर :

मयूर पंख की प्राप्ति मे किसी प्रकार की हिंसा अथवा पीड़ा नहीं होती, जब मयूर के पंख बडे-बड़े हो जाते हैं तो उसे भार महसूस होने लगता है, तब वह स्वयमेव ही अपने पंखों को छोड़ देता है। चूंकि मयूर के पंख इतने कोमल होते हैं कि आंखो के भीतर जाने पर भी आंखों को कष्ट नहीं होता। मृदुता हल्कापन धूल पसीने को ग्रहण नहीं करना इत्यादि गुण होने से जीव रक्षा के उद्देश्य से ग्रहण करना कोई दोषपूर्ण नहीं है, तथा जिनवाणी की आज्ञा भी है अतः मुनि गण मयूर पंख से बनी पिच्छी को ग्रहण करते हैं।

प्र.संचालन समिति कैसे वनाना ,उनका क्या कार्य हैं?

उत्तर :

संचालन समिति➖पाठशाला के प्रति समर्पित और सक्रिय महिला अथवा पुरूष कार्यकर्ताओं को ३अथवा ५की संख्या में रखे इनका कार्य-किन्हीं तीन व्यक्तियों के नाम से अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करना ,पाठशाला में लगने वाली आवश्यक सामग्री ,रविवारीय  नाश्ता ,वार्षिक महोत्सव ,शिक्षक सम्मान ,क्षेत्र-वन्दना आदि को उचित तरीके से संचालित करना।

प्र.पाठशाला का क्लास रुम कैसा होने चाहिए?

उत्तर :

पाठशाला का क्लास रुम➖*पाठशाला की कक्षाएं लगने के स्थान में समुचित प्रकार ,बच्चों को बैठने के लिए चटाई ,बैग रखने के लिए ऊँचा पाटा अथवा बैंच ,एक बडा सा लकडी का ब्लेक या ग्रीन बोर्ड ,चाक एवं पढाने समय शिक्षकों को बैठने के लिए थोडे ऊँचे आसन की व्यवस्था (जिसमें पैर मोडकर बैठा जा सके मात्र पैर लटकाकर नहीं एवं शिक्षक की दृष्टि सभी बच्चों पर पड सके )होनी चाहिए।
*कक्षा को तीर्थंकर आदि के कैलेमाडर ,शिक्षा प्रद धार्मिक चित्र ,जीवस्थान आदि के चार्ट लगाकर स्वयं सुसज्जित करना चाहिए एवं बच्चों से करवाना चाहिए|

प्र.पहले पाठशाला की व्यवस्था बनाएं अथवा बच्चें आएं फिर व्यवस्था बनायें?

उत्तर :

क्या आपने कभी दुकान खोली है यदि हॉ तो पहले क्या करते है ग्राहक का इंतजार की दुकान को सुव्यवस्थित*।
*विश्वास के साथ आप पच्चीस-पचास हजार रुपये खर्च करके फर्नीचर बनवाते हैं। लाखों रुपयों का माल भरते हैं तभी ग्राहक दुकान में आता है ।बीते जमाने की बात अलग थी कि घर के एक कोने में थोडा -सा माल रख लिया तब भी ग्राहक आते और माल खरीद कर जाते थे । आप कहें-सभी दुकान दार ऐसे नहीं करते कुछ तो १०-२० साल में ही इतने सक्षम हो पाते हैं तो हमारा पूछना है हमारी पचास सालों से चल रही पाठशालाओं में आज तक ऐसा विकास क्यों नहीं हुआ ?कारण यही है हमारी दृष्टि इस विकास की ओर गई ही नही*ं ।
*और मान लीजिए यदि आपने एक बार २०-२५ हजार रुपये पाठशाला के कार्यालय आदि को व्यवस्थित करने में खर्च भी कर दिये और बच्चे भी नहीं आए तो विशेष क्या घाटा हुआ आपकी सब सामग्री तो आपके पास ही रहेगी कभी तो उपयोग आएगी ही यद्यपि ऐसा कभी हुआ नहीं की बच्चे न आए हों ।पाठशाला में आने वाले बच्चे भले ही कम ज्यादा हों किन्तु हमें अपनी व्यवस्थाएँ तो दुरुस्त रखनी ही चाहिए एक दुकानदार की भॉति तथा नया-नया पुरुषार्थ भी करते रहना चाहिए|

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प्र.मांसाहार का त्याग करने के पश्चात यदि दवाई आदि में लेना पड़े तो क्या पाप लगेगा??

उत्तर :

भारतीय संस्कृति में धर्म की रक्षा के लिए प्राण भी चले जाए तो उसे श्रेष्ठ माना है। यदि हमने मांसाहार का त्याग किया है तब कोई भी औषधि लेने के पहले उसकी शुद्धता और अशुद्धता का ज्ञान कर लेना चाहिए तथा शुद्ध औषधि दवाई ही लेना चाहिए। कई बार हम लोग दवाइयों में छूट है ऐसा कहकर ग्रहण करते हैं किंतु यदि हम दृढ़तापूर्वक डॉक्टर को बता दें कि हम अशुद्ध दवाई नहीं लेते तो वह हमे शुद्ध दवाई दे देगा। यदि ऐसा ना करके खून मांस से मिश्रित दवाई लेते हैं तो घोर पाप का बंध अवश्य ही होगा।

प्र.प्रश्न मंच को आकर्षण कैसे बनाएं?

उत्तर :

सही उत्तर आने पर भी चाहें तो और भी अन्य बच्चों से पूछें ,जिससे आत्मविश्वास का पता चलता है और अंत में जिसने सबसे पहले सही बताया है। उसे पुरस्कृत करें एवं बच्चे  द्वारा बताये गये उत्तर का पुन: माईक से सबके सामने व्याख्यान करें ।जैसे -२४वें तीर्थंकर कौन हैं उत्तर -भगवान महावीर । संचालन -आप सभी जानते हैं जो संसार से पार लगाते हैं , वे तीर्थंकर कहलाते हैं तीर्थंकर २४ होते हैं ।उनमें अंतिम तीर्थंकर का नाम आया है भगवान महावीर जो बिल्कुल सही है । गलत उत्तर आने पर उत्तर सही नहीं हैं ऐसा भी कह सकते है ।यदि कोई न बता पावे तो आप स्वयं उस प्रश्न का उत्तर व्याख्यान सहित बतावें ,अथवा अगली बालसभा के लिये प्रश्न सुरक्षित रखे तथा बच्चों से खोज कर लाने के लिये कहें।

प्र.पाठशाला की अर्थ व्यवस्था कैसे बनाये?

उत्तर :

हॉ पाठशाला का कोई विशेष स्थायी फंड नही हैं,वहाँ ऐसा व्यवस्था करें ,प्रति वर्ष में एक बार १०००/ -देने वाले सदस्यों का निर्माण करें। सहयोगी सदस्य के रुप में उनका नाम घोषित करें बीस अथवा चालीस सदस्य तैयार होने पर लगभग २०-४०हजार रुपयों की राशि एकत्रित हो जाती है ,उसका कोई स्थाई फंड न बनायें ।बल्कि इतनी राशि एक वर्ष में पाठशाला शिक्षक एवं बच्चों के उत्साह वर्धन में खर्च ही करेंगे ऐसा संकल्प करें ।निश्चित ही समाज उत्साह के साथ आपके इस कार्य में सहयोग करेगा* ।
_पाठशाला द्वारा समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि रखने से भी आर्थिक व्यवस्था सुदृढ बन सकती है।_
*९५प्रतिशत व्यक्तियों को अपना नाम बोर्ड पर लिखा देखकर बेहद खुशी होती है तो क्यों न जन्मोत्सव ,विवाहोत्सव ,विवाह वर्ष गॉठ पर गृहशुद्धि गृहप्रवेश (भवन उद्घाटन )प्रतिष्ठान उद् घाटन आदि कार्यक्रमों पर दान लेकर बोर्ड पर उनका नाम लिखें तथा सम्पर्क बनायें रखें।*
_पाठशाला की दान पेटी रखे ,यदि निजी मंदिर वाले व्यक्ति या कमेटी के लोग सार्वजनिक रुप से पेटी नहीं रखने दें तो रविवारीय पूजन के समय शनिवार बालसभा के समय पर रखें ,पाठशाला के बच्चों को २-३रुपये डालने का नियम देते रहें ।पाठशाला की जो शिक्षिका बहिनें आर्थिक रुप से सम्पन्न हैं ,उन्हें समय -समय पर मासिक सदस्य ,वार्षिक सदस्य ,स्वल्पाहार दाता के रूप में आगे आना चाहिए ,अपने रिश्तेदारों को प्रेरित करना चाहिए ।संचालिका बहिनें इस ओर ध्यान दे सकती हैं।_

प्र.बच्चों द्धारा प्रश्न पुछने क्या करें?

उत्तर :

कोई बच्चा प्रश्न पूछे तो उसे रोके अथवा डॉंटे नहीं ।यथायोग्य बुद्धि का प्रयोग करते हुए मधुर वाणी में सरलता से समझाने का ,उत्तर देने का प्रयास करें ।उत्तर न बनें तो कल समझायेंगे ऐसा ।कहें एवं उस प्रश्न का समाधान स्वयं खोजे ,गुरू अथवा अन्य विद्धानों की सहायता लें । जिज्ञासु बालक ही रूचि पूर्वक पढता है बार-बार मना करने पर उसकी पढने की रूचि भी समाप्त होने लगती है।

प्र.जिन पूजा का क्या महत्व है?

उत्तर :

जिनेंद्र भगवान की पूजा करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है एवं पर पदार्थों के निमित्त से उत्पन्न होने वाली रूपी अग्नि शांत होती है। मन की चंचलता नष्ट होती है। तथा किसी भी कार्य को करते समय होने वाले आत्मविश्वास की कमी नष्ट होकर संकल्प शक्ति बढ़ती है।

प्र.जब हमे दुख या मानसिक तनाव होता है तब हमें लगता है कि यह सब दूसरे के कारण से हो रहा है हम उन्हें दोषी ठहराते हैं क्या यह सही है?

उत्तर :

जीवन में वास्तविकता घटने वाली प्रत्येक घटना के लिए कोई दूसरा व्यक्ति निमित्त भले ही बन जाए किंतु वास्तविकता से देखे तो हमारे कर्म के उदय के कारण ही सामने वाले व्यक्ति ने हमारे साथ अच्छा या बुरा व्यवहार किया है अतः ऐसे समय  मात्र सामने वाले व्यक्ति को दोषी मानना ठीक नहीं हैं*।
कहा भी है*:-(:-(” अपने कर्म सिवाय  जीव को, कोई न फल देता कुछ भी।
पर देता है यह विचार तज, स्थिर हो छोड प्रमादी बुद्धि।।

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प्र.मुनि बनने के लिए हमें क्या प्रयास करना चाहिए?

उत्तर :

मुनि बनने के लिए सर्वप्रथम हमें संसार, शरीर एवं भोगों का यथार्थ स्वरुप जानकर अपने वैराग्य रको बढ़ाना चाहिए। शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए। यथाशक्ति अभक्ष्य  पदार्थों का त्याग कर व्रत नियम संयम पालन करना चाहिए। प्रतिदिन भक्ति भावपूर्वक अष्ट द्रव्य से जिनेंद्र भगवान का पूजन अभिषेक करना चाहिए एवं सच्चे गुरुओं का सानिध्य प्राप्त कर उनके चरणों में बैठकर उनके उपदेशों को सुनकर परिणामों को निर्मल बनाना चाहिए।

प्र.पुरस्कार वितरण में होने वाले राग -द्धेष से कैसे बचें?

उत्तर :

प्रति दो माह में मौखिक अथवा लिखित परीक्षा लेकर उत्तीर्ण विद्यार्थी यों को पुरस्कृत करें_ । _संभव हो तो ६०% से अधिक अंक लाने वाले_ _विद्यार्थीयों को भी सम्मानित करें।_
प्रति रविवार पूजन के समय बच्चों औऱ बच्चियों के नाम की अलग-अलग चाटे इकट्ठी रखें ।उनमें से दो-दो बच्चों का ड्रा के द्वारा आज की पुजन के प्रमुख -पात्र (भरत-बाहुबली एवं ब्राम्ही -सुन्दरी 🙂 के रूप में चयन करें ,उन्हें मुकुट लगाकर हार पहनाकर आगे बैठाकर पूजन करावें तथा पूजन के अन्त में पुरस्कार भी देवें ।
*बच्चों को उनके जन्म दिन पर प्रार्थना सभा में सामूहिक रूप से बधाई देते हुए सम्मानित करें तथा कोई एक छोटा-सरल नियम दें* ,जिसे बच्चा एक साल तक पाल सके यदि ग्राम में कोई साधु -सन्त हो तो उनके समक्ष नियम दिलवाकर आशीर्वाद दिलावें ।
ड्राईंग करो अथवा रंग भरो प्रतियोगिता आयोजित करें,चित्रों को दो -तीन दिन तक किसी बङे हाल आदि स्थानों पर टॉग देवें जिससे सभी श्रावक उन्हें देख सके ।अन्तिम दिन प्रथमादि पुरस्कार अथवा सामान्य पुरस्कार बॉटे
बच्चों में प्रथमादि स्थान के लिए कम से कम तीन निर्णायक रखें। उन तीनों ने जितने -जितने अंक दिये उन सबका औसत परिणाम निकाल कर सर्वाधिक अंक प्राप्त बच्चों को क्रमानुसार पुरस्कृत करें।